बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 44)

मन्नी की सास बहुत प्रसन्न हुईं। रुपया उठा लिया और पूछा, "घर बसा या नहीं। 


बिल्लेसुर ने जबाव दिया कि घर माँ-बाप के बसाये बसता है।

 मन्नी की सास ने कहा कि वे दस-पन्द्रह दिन में आयेंगी तब ब्याह की पक्की बातचीत करेंगी। बिल्लेसुर पैर छूकर विदा हुए।

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त्रिलोचन दूसरे दिन आये, और कहा, "बिल्लेसुर, तैयार हो जाओ।"

बिल्लेसुर ने कहा, "मैं तो पहले से तैयार हो चुका हूँ।"

त्रिलोचन खुश होकर बोले, "तो अच्छी बात है, चलो।"

बिल्लेसुर ने कहा, "भय्या, मन्नी की मौसिया सास की भतीजी को ससुराल में एक लड़की है, कल आये थे, बातचीत पक्की कर गये हैं, अब तो मुझे माफ़ी दीजिये।"

त्रिलोचन नाराज होकर बोले, "तो वह ब्याह ज़रूर गैतल होगा। वैसी ही लड़की होगी। हम शर्त बदकर कह सकते है।" 

मुस्कराकर बिल्लेसुर ने जवाब दिया, "और तुम्हारा दूध का धोया है? मन्नी की मौसिया सास की भतीजी की ससुराल की लड़की में दाग़ है, और तुम्हारी में, जिसके न बाप का पता, न माँ का, न सम्बन्ध का, मखमल का झब्बा लगा है?"

"देखो, फिर पीछे पछताओगे।" त्रिलोचन बढ़कर बोले।

"पछताने का काम ही नहीं करते; बहुत समझकर चलते हैं, त्रिलोचन भय्या।" बिल्लेसुर ने कड़ाई से जवाब दिया।

"अच्छा, चलकर ज़रा लड़की तो देख लो, तुम्हें लड़की भी दिखा देंगे।"

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